मंगलवार, 30 जून 2009
लोक कथा
सौ का भाई साठ- राजस्थानी लोक कथा
एक बनिया एक जाट में सौ रुपये मांगता था। जाट की साख् अच्छी नहीं थी। बस चलते लिया हुआ रुपया वापस नहीं देता था। हर बार कोई न कोई बहाना गढ लेता था। एक बार बनिये ने ज्यादा तकाजा किया तो जाट ने कहा
‘‘बही ले कर घर आ जाना। आज हिसाब साफ कर दूंगा।बहुत दिन हुए आप को चक्कर लगाते हुए।’’
सेठ खुशी खुशी बही ले कर उस के घर गया। सोचा,आज चैधरी को जब्बर सुमत सूझी !सनकी के जंच गयी सो भली। जाट ने सेठ के पास खड़े होकर कहा ‘‘क्यों सेठजी मेरे खाते में सौ रुपये बेालते है न?आज एक एक पाई चुका देता हूं। देखो ठीक से हिसाब साफ करना ।’’
फिर अंगुलियों पर जोड़ बाकी करते हुए बोला
‘‘सौ का भाई साठ
आधे गये भाग
दस दूंगा दस दिलाउंगा
और दस का क्या लेना देना
बोलो हिसाब साफ हुआ कि नहीं ?चलो अब बच्चों का मुंह मीठा कराअेा बहुत दिनो बाद वसूली हुई है।’’
यह सुन कर बनिये से भी हंसे बिना नहीं रहा गया। जाट का एक छोरा पास हीे खड़ा था। बोला ‘‘क्यों काका आज सेठजी बहुत खुुुुुुुुश दिख रहे है।’’ जाट ने कहा ‘‘आज खुश नही होगें तो कब होगें पूरे सौ रुपयोें का हिसाब साफ किया है। अब भी तेरा मुंह मीठा नहीं कराये तेा इन की मरजी।’’
-------श्री विजयदान देथा के संकलन ‘चैधराइन की चतुराइ’ से।
सोमवार, 29 जून 2009
मुस्कान
-सारी दुनिया एक ही भाषा में मुस्कुराती है।
-ऐसा कोई चेहरा नही जो मुस्कुराने पर खूबसूरत नहीं दिखता।
-मुस्कान आपके चेहरे के झरोखे की तरह होती है जो कहती है कि आप घर पर है।
-किसी अजनबी को अपनी एक मुस्कान दीजिये। हो सकता है कि दिन भर में उसे मिलने वाला यह एकमात्र उजाला हेा।
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उत्तर ही हुये जब
प्रश्न से गुत्थम गुत्था क्या खोजें?
चांदनी ही झुलसाये
कंांेपल को
तब क्या प्रखर धूप को इल्जाम दें ?
सुबह उदास सी जगे
थकी सांझ को क्या बजें?
रिश्तों की चुभन ही क्या कम थी?
जो अब गीत भी चुभें
दूरी ही आततायी बनी
और कहते हो न आयंे तो?
जीवन के झंझावत क्या कम थे
मौसम के थपेड़े आ आ टकराये
मन के दावानल में झुलसा तन
क्या गुहार लगाये,
भीतर का प्रश्न ही दुबक गया तो
उत्तर किसको गले लगाये?
बिन भाव के
उत्तर कब तक लंगड़ाये?
बिचैलिया आ आ गांठ लगाये
प्रश्न हुये अनुत्तरित से
मौन ने साधा अगणित रोष
भटके भाव
ढूंढ लिये
तमाम रस
शब्द शब्द
कोश कोश
अब गूंगी भाषा क्या कहे?
---किरण राजपुरोहित नितिला
रविवार, 28 जून 2009
हर स्त्री की उम्मीद
तब तक
यह समय नही रहेगा
समय बदल जायेगा
हमेशा ऐसे ही थोड़ी रहेगा !!
तब बेटियों की कद्र होगी
रिवाज बदल जायेगें
रीतियां बदल जायेगी
कुरीतियां तो
समूल नष्ट हो जायेगी
बहुत अधिक सम्मान
दिया जायेगा
बेटे बेटियों में
तनिक न फर्क रहेगा
जन्मते ही बिटिया को
खौलते कड़ाह में या
अफीम न सुंघाया जायेगा,
भैंाडापन छिछोरापन की तो
बू न रहेगी
समाज में हर लड़की
गाजे बाजे से ब्याहेगी
उसे सांझ ढले
पाउडर क्रीम थोपकर
चैखट पर खड़े हेाकर
किसी पुरुष को इशारे से
भीतर न बुलाना पड़ेगा,
तब पिता भाइ,
बहन बेटी को बेफिक्र होकर
काॅलेज भेज सकेगें
भीड़ में
यहां वहां हाथ न धरे जायेगें
बेटियंा बोझ न होंगी
जवान होती बेटी के पिता को
जूतियां न घिसनी पड़ेगी।
पूरा घूंघट निकाले
घर का काम निबटा
ड्योढी में बैठी चरखा कातती
औरतें उसांस लेकर
धीमे धीमे बतियाती रहती थी
भरी दुपहरी,
तालाब के तीर दम भर विश्राम करती
बतियाती रहती थी,
हमेशा ऐसे ही नही रहेगा
हम जैसी तकलीफें
हमारी लड़कियों को नही उठानी पडे़गी
तब लड़कियां हंसते हंसते ससुराल जायेगी
दहेज के ताने नही सुनने पड़ेगें
वह युग तो कुछ और ही होगा ,
ऐसा ही है?????
-किरण राजपुरोहित नितिला
बुधवार, 10 जून 2009
छू कर मेरे मन को
-संभावनाओं को अच्छाई में बदलने के लिये हमेशा जोखिम उठाना पड़ता है।
-कोई व्यक्ति जिस हद तक जोखिम से बचना चाहता है उसी हद तक वह डरा होता है।
-असफलता की आशंका के चलते काम टालने से डर और ताकतवर बनता है।
मंगलवार, 9 जून 2009
बेटे की दावत है ..............
एक कोने में
खड़ा हूं
मैं
लिपे पुते चेहरों को
पर्दे के कोने से देख रहा हूं
मैं
मेहमानों की भीड़ से दूर
बेजरुरत का सामान हूं
मैं
बेटे को दुनिया में लाया
लेकिन आज
परिचय की चीज
नहीं हूं
मैं
पोपले मुंह का लड़खड़ता बूढ़ा
देास्तांे में उसके
शरम की चीज हूं
मैं ,
रह रह याद आती है
मां की पनीली आंखें !!
छोड़ आया था
एक आशा देकर
शहर की अंधी दौड़ में,
सुनकर न सुना
उन्हीं आहों की सजा पाता हूं
मैं!!!!
किरण राजपुरोहित नितिला
रविवार, 7 जून 2009
शनिवार, 6 जून 2009
जरुरी है़..................
भाई बहन प्रेमी युगल
हर रिश्ते में
विश्वास जरुरी है !
दर्द हो भले ही पराया या अपना
अंर्तमन में एहसास जरुरी है !
जीतने वाले हर गर्वित सीने को
एक पीड़ा हार की जरुरी है!
दुख से बुत बनी अंाखों का
करुण विलाप जरुरी है !
खिलखिलाते बच्चे की आंखों में
स्नेह का आह्लाद जरुरी है!
गीत से पहले राग का
आलाप जरुरी है !
तरुणों के उग्र कदमों में
एक ठहराव जरुरी है!
बीते जीवन के हर रंग की
मन में याद जरुरी है!
छोटी सी भूल हो लेकिन
उसका पश्चाताप जरुरी है!
भविष्य के पथ पर
दौड़ते हो सधे कदम
दौड़ते हो सधे कदम
किन्तु भूत पर प्रकाश जरुरी है!!!
-किरण राजपुरोहित नितिला
शुक्रवार, 5 जून 2009
छू कर मेरे मन को
- भलाइयों में जितना द्वेष होता है बुराइयों में उतना ही प्रेम। विद्वान, विद्वान को देखकर ,कवि कवि को देखकर जलता हेै।पर जुआरी जुआरी को ,चोर चोर को देखकर ,शराबी शराबी को देखकर सहानुभूति दिखाता है। चोर, चोर पर आई आफत को देखकर मदद करता है पर विद्वान लोग दूसरे विद्वान को गिरा देखकर खुश होते है। बुराई से सब घृणा करते है इसलिये बुरों में परस्पर प्रेम होता है। भलाई की सारा संसार प्रशंसा करता है इसलिये भलों में विरोध होता है।
-रुई सी मुलायम वस्तु भी दबकर कठोर हो जाती है।
-इष्र्या में अग्नि है परंतु अग्नि का गुण उसमें नहीं।वह मन को फैलाने के बदले और संकीर्ण कर देती है।
-चोरी की कलम में यमराज निपुण है उनकी नजर कीमती चीज पर पड़ती है।
-अनादर नाम की चीज राख की तरह होती है वह शायद भीतर ही भीतर आग को बनाये रहती है लेकिन उपर सेउसके ताप को प्रकट नहीं होने देती।
-बुराई की जड़ जमने के लिये इतना ही काफी है कि अच्छे लोग कुछ ना करे।
गुरुवार, 4 जून 2009
दोस्त................ तुम
दोस्त दोस्त न रहे
तो क्या
उसे दुश्मन मान लें,
ठंडी ठंडी दोस्ती निभाते हुये
क्या बरस गुजार लें
उज्र है तुम्हारी कई बातों से
तो क्या उलाहना दे दूं!!
छोटी सी
महज एक बात के लिए
दोस्त खो दूं,
साथ साथ है
लेकिन
मन से मन दूर बहुत है
तुम मानो,
मैं न मानूं कि
दोस्त दुनिया में बहुत है,
ढूंढ कर देख लो
अगर मुझ सा एक भी पाओ
याद अगर कभी न आये मेरी
बेशक मुझे भूल जाओ ,
साथ थे हर काम में
एक अहम से दूर बैठे हो
मैं तो भूल चुका
लेकिन तुम तन के बैठे हो
यही करना था तो सुनो!
एक बात मेरी सुनना
म्ुुझे तो ठीक है
पर औरों पर रहम करना!!!!
किरण राजपुरोहित नितिला
बात सुनो..................!!
तुम कहते हो
इस दिल की बात सुनो
दिल कहता है
होश का खयाल रखो!
तुम कहते हो
इन आंखांे में
अपने गम भूल जाउं
बूढी आंखेां के पानी को
कैसे भूल जाउं?
तुम्हारे केशों में
अपना आसमां तलाशूं
या
राशन की कतारों का
हैासला रखूं
तुुम्हें हम सफर बनाकर
सपनों में खो जाउं
या
भाई की तालीम
और बहन का घर बसाउं
तुम्हारे कांधे पर
सिर रख कर
दुनिया जहां को भुलाउं
या
इस जहां के कारवां में
अपनी जगह बनाउं
जिंदगी का एक दिन भी
नहीं कटता
चाह कर भी जिंदगी को
भुलाकर
मुहब्बत नहीं कर सकता!!
मेरे हाथ के
फूलों को ही नहीं
खरोचों को भी
थामना होगा
जिंदगी में ही नहीं
सपनों में
भी हकीकत से
सामना हेागा !!!!!
किरण राजपुरोहित नितिला
सोमवार, 1 जून 2009
छू कर मेरे मन को
-वह व्यक्ति जिसने कष्ट नहीं भोगा,अपनी शक्तियों से अपरिचित रहता है।
-सुख-दुख और जीवन -मृत्यु बिना मांगे अपने आप मिल जाते है।
-दिन में सपने देखने वाले ऐसी बातें भी जान जाते है जिनकी तरफ रात में सपने देखने वालों का ध्यान नहीं जाता है।
-जब आदमी रोता है,तब सबसे सच्चा होता है,उजला होता है। रोना कायरता की नहीं खुद का सामना करने की ताकत की निशानी है।
वे़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ा.................
उदास चेहरा
वो दबी सफेद साड़ी में
गीली आंखें
आसमां देखती खिड़की से,
वर्ष घिसटती
काले सीले कमरे में,
रंगों से बहुत दूर
पटकी गई कोने में,
बांधी गई
रिवाज मजबूरी के खूंटे से
वो चहकती चिड़िया
बैठी थी
बाबुल के मुंडेर पर,
सफेद रंग छूटे
सतरंगे सपने जागे
देखे नीला आसमां
आस भरी आंखें
उसके आंगन
हवा झूमेगी खुशी से
तब ये आंखें
छलकेंगी खुशी से!!!!!!!!
-किरण राजपुरोहित नितिला
ऐ खुदा
खुदा यूं आलम कर जहां में
नेकनीयती भर फिजां में
बिखरा खुशियों की फुहार
म्ुाझसे कर इतना करार
हर घर दाल रोटी की दावत हो
दिल में ईमान शराफत हो
फिर कर सुकूं की बौछार
मुझसे कर इतना करार
हिना से महके गोरे हाथ
दुलहन बेटी देखे हर बाप
बहू पर न हो कोई अंगार
मुझसे कर इतना करार
एक दूजे के गम में शरीफ
ब्ूाढे केा बेटा चैक को नीम नसीब
हर तरफ हो सुहाना आबशार
म्ुाझसे कर इतना करार
--किरण राजपुरोहित नितिला