शनिवार, 18 जुलाई 2009


झिलमिल रात

चंाद ने मुस्करा कर 
तारों ने झिलमिला कर
 खिलखिलाकर 
रात का स्वागत किया 
चांद तारे अैार रात 
मिल कर गुनगुनाने लगे 
चांदनी की लय पर 
धरती झूमने लगी 
रात रानी महकने लगी 
नन्हे तारों से 
झिलमिल हुई धरती 
जुगनु से चमकती 
दमकती चूनर ओढ़ 
यामिनी चली
 ठुनक ठुनक 
हौले हौले 
गगन ने गवाक्ष से 
झुक झुक चुपके से झांका 
तेा रोका !
घड़ी पलक ठहर जाओ 
घन का घनन घनन 
 गान सुनती जाओ! 
-किरण राजपुरोहित नितिला

बुधवार, 15 जुलाई 2009


तुमको मैंने!!!!़़़़़़़़़़़़़़़़़............

दुनिया की भीड़ में
जब भी अकेली हुई मैं
साथी बना पाया तुमको,
अंधेरी रात में एकाकी हुई
चांद बने पाया तुमको,
चिलचिलाती धूप ने झुलसाया
छांव बने पाया तुमको !!!
सावन की तपन ने घेरा
रिमझिम बरसे पाया तुमको !
गीत लिखा जब भी कोई
कलम ने हर बार गाया तुमको
सितार हुआ मिजराब से झंकृत
हर सुर में पाया तुमको
बंद बांखों की खिड़की से झांका
अपने ही भीतर पाया तुमको!!!!!!!!!!!
...........ििकरण राजपुरोिहत ििनितला

रविवार, 12 जुलाई 2009


छू कर मेरे मन को




एक घंटे की खुशी के लिये झपकी लें।

एक दिन की खुशी के लिये पिकनिक पर जायें।

एक महीने की खुशी के लिये शादी कर लें।

एक साल की खुशी के लिये विरासत में संपत्ति पायें।

जिंदगी भर की की खुशी के लिये किसी अनजान की मदद कीजिये।
-------- चीनी कहावत

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

किवता



प्रियतम तुम......................

जबसे हुये हो 
तुम 
दृष्टि से ओझल 
इन नैनों में बस गये हो, 
 पलकों केा क्यूं झपकाउं मैं
 स्वपन में भी बसे हो 
तुम 
हाथ छुड़ा कर गये जिस पल  
 और गहरे उतर गये हो 
तुम
 हलचल सी हेाती है 
तन मन में 
 अपने खयालों में मुझे
जब
छूते हो हौले से,
मुझे न सही 
मेरी तस्वीर ही देख लो 
ये सूजी आंखें 
पुकारेंगी तुम्ही को 
रोम रोम की यही पुकार है 
एक बार आ जाओ तुम 
चांदनी में चांद को 
मैं देखूंगी 
उसी पल 
देखना तुम
मेरी व्यथा वही कहेगा तुमसे 
समझना तुम 
और कुछ कहना तुम..............
  किरण राजपुरोहित नितिला

छू कर मेरे मन को

-जब भी कोई फल खाऐं उस पेड़ को रोपने वाले व्यक्ति के बारे में सोचें, उस पेड़ के बारे में सोचें जिस पर वह फल पका है।

-जेा व्यक्ति छोटी छोटी खुशियों के लिए शुक्रिया आदा नहीं करता उसे बड़ी खुशियां कभी नही मिलती।
 
-कृतज्ञ हदय में निराशा के बीज कभी प्रस्फुटित नही होते। 

मंगलवार, 7 जुलाई 2009



पिताजी अंटी में

लघु कथा



  बनिये का बच्चा दस बरस की उम्र के बराबर अकल साथ ले कर जनमता है। बोलना सीखता है तब तक तो अकल उसके पांवों में लोटने लगती है। एक बनिये के एक ऐसा ही होशियार बेटा था। सातवें बरस तो वह बेखटके दुकान का सारा काम करने लगा कम तौलना, कम नापना और झूठ बोलना । पिता को जब पूरा भरोसा हो गया तो वह सारे दिन वसूली करने लगा। दुकान की देहरी पर भी नहीं चढता था। लोगबाग बच्चे को ठगने की सोच कर आते पर ख्ुाद ठग जाते थे। फिर भी मजाल है जो पता चल जाये। 
एक दिन एक जाट सौदा सुलुफ के लिए आया। छोरे को अंगुली से दिखा कर बोला  
‘‘एक रुपये का मालवी गुड़ तौल दे।’’ 
जाट ने सोचा मांगेगा तो रुपया दे दूंगा नहीं तो उधार है ही । छोरे ने सोचा सबेरे सबेरे कौन उधार करे ! नकदनारायण का आसामी नहीं देख कर छोरे ने कहा ‘‘पिताजी वसूली पर गये है। सांझ को आयेगें । मुझे भाव मालूम नहीं।’’
 छोरे की होशियारी देख कर जाट को गुस्सा आ गया। झट से रुपया निकाल कर कहा 
‘‘पिताजी मेरी अंटी में है। यह ले!’’ यह कर उस ने रुपया उस की ओर उछाल दिया। कहा, ‘‘अब फुरती से तौलता हुआ नजर आ!’’
 --------- विजयदान देथा

रविवार, 5 जुलाई 2009


छू कर मेरे मन को

-किसी भी व्यक्ति के लिये स्वयं केा खुद की ही बेड़ियों से आजाद कर पाना सबसे कठिन होता है। ऐसा नही होता तो शराब व सिगरेट की कंपनियां कब की बंद हो चुकी होती ।

-हम जब से जन्म लेते है तब से ही मां बाप के जीवन का लक्ष्य बन जाते है। उनके सपनों की सूची में हमारी सफलता सबसे उपर होती है और वे इसके लिये जी जान से मेहनत करते है। हम ये सब इसलिये नही समझ पाते क्यों कि हम इस अनुभव से नही गुजरे होते है।

-हमारे माता पिता की किसी मामले में गलत होने की संभावना हमसे बहुत कम होती है क्योंकि वे दुनिया को हमसे बेहतर तरीके से समझते है।

-जिंदगी की रफतार इतनी तेज न होने दें कि किसी की मदद की गुहार भी आप तक न पहंुच सके।