मंगलवार, 30 मार्च 2010

वो..................

वो...................

नही की जाती
अब प्रतीक्षा
अधीरता से
 नही रहती
 अब इंतजारी
उस मानुस की!!!!!!
 जिससे एक अनोखा रिश्ता
बन जाता था
ढेर ढेर अभिव्यक्तियां
ढोता था अपनेपन से
नवाढो से बूढी मांयें
बाबूजी के बच्चों से लेकर
बच्चों के बाबूजी तक
निहारते थे
उसका रस्ता
 उसका बस्ता
उम्मीद और इंतजारी को
परिपूर्ण करता था
बांचने को आतुर इबारतें
सुनने को  व्यग्र अजीज
 वे तकते थे उसका आना ,
 कई कई घड़ियों के
हुलसते जीवन थे
उन कागजों में
बातें
शिकायतें
प्यार .याद
बधाई शुभकामना
आना जाना
राखी रुपये,

कभी कभी
 तार लाता था
 सुनकर ही सबकी
सांसें  अटक जाती
  न जाने इसमें
 किसकी बदकिस्मती कैद  है
होनी तो खैर होती 
जब नम आंखों से तार पढता
उस तार का बोझ
कई दिन तक वह महसूसता
बूढे बाबूजी के कंधे पर हाथ रख
 उन्हें सान्त्वना देता
तब बेटा सा बन जाता वह ,
प्रीतम की चिठ्ठी बांच
 प्रियतमा की विरही भावनायें उकेरता
वह अंतरंग सखी बन जाता
भाभीसा को भाई की पाती देकर
जो ठिठोली करता
वह देवर से सकुचा जाती
 साइकिल के चंचल पेंडल पर उछलता
नटखटिया आगे बढ जाता
  भाभी नेह से निहारती रह जाती !
छुटकू का काका बन
ला देता शहर से
निब होल्डर  पुस्तक,
आले में संभाले पड़े
 पत्र
आत्मीय के साथ
डाकिये की भी स्मृति रखते
 छ दिन साइकिल की टिन टिन सुन
 एक दिन खाली सा लगता
लेकिन अब वह टिन टिन गायब है
हमारी दिनचर्या से
 अब पत्र नही लिखे जाते
पुरानी बात हो गई
अतीत हो गये
अब नही प्रतीक्षा भी
गांव भर को
देवर
 बेटा
सखी
सहारा
वह अधीरता का पिटारा
स्नेह का पात्र
वह  अंजाना जो
हर एक का  अलग ही
अजीज हो जाता था ,
अब है
झट से आते
इंतजार से रिक्त
असल व्यग्रता से दूर
जबरन ही टपके
आडंबर से भरे
उथले सतही
नकली मैसेज
जो कईयों को भेजे जाते
 एक साथ
सर्वजन सुलभ की तरह
 जानता है यह
पढने वाला भी
इसीलिये  गहरे नही उतरते
 और डिलिट हो जाते
मन से मानस और मशीन से !!!!!
...........किरण राजपुरोहित नितिला  

गुरुवार, 25 मार्च 2010

रोज सुबह होती है


   ये अंधेरे मैंने नहीं लिखे
फिर मेरे हिस्से क्यूं आये ?
हाथों की लकीरें तो मेरी थी
दूसरे की तकदीर कैसे जुड़ी ?
रेखाओं के गुत्थम गुत्था होने में उलझ गया सब कुछ
खिंचते तनते उलझते
आखिर टूट गये ,
पर चिंतित होना नहीं सीखा
ये विवशताओं की प्राचीर लांघ रही हूं
आज साफ सफफाक  हथेली
मेरा अपना अस्तित्व तलाशती है
अंखुआता एक सपना हूं मैं
नई धरा हूं
मेरे भीतर की दृढता पर पांव टिके है
बस यही दरकार है
नई इबारत लिखने को आतुर हूं मैं
उजाला तो हर सुबह चहचहाता है
अंजुरी भर बूंदें ओस की मेरे हिस्से में है
तभी तो रोज सुबह होती है!!    किरण राजपुरोहित नितिला

मंगलवार, 16 मार्च 2010

ओ! चित्रकार

ओ! चित्रकार 


रंगों संग चलने वाले
     आकृतियों में ढ़लने वाले
     भावों के साकार                             ओ! चित्रकार

सृष्टि से रंग चुराकर
     मौन को कर उजागर
     रचते हो संसार                          ओ! चित्रकार

    खिल उठते हैं वीराने
    जी जाते सोये तराने
    बजते सुर झंकार                        ओ! चित्रकार

    रंगमय हो जाते रसहीन
     सवाक् हो जोते भावभीन
     रीते को देते प्रकार                       ओ! चित्रकार

गुरुवार, 11 मार्च 2010

छू कर मेरे मन को


.......बहुत सी मुरादें ऐसी होती है जो हमारे अंदर रहती है पर हमें पता नही देती । वे शोर नही करती, बाहर नही दिखती, वे अपने होने का पता नही देती । हम उनके बारे में नही जानते इसलिए उनके पूरी होने की दुआ  भी नही करते ।

........लोग जानकारियों का खजाना है ।

........आदमी अपने आप में बहुत से सवालों का जवाब है ।

........अपना महत्तव बनाये रखने के लिये चुप रहना जरुरी होता है ।

........खुद को सन्तुष्ट  करना मुश्किल है।

सोमवार, 8 मार्च 2010

यह एक दिन

 यह एक दिन


हर वर्ष आता है
या शायद
 लाया जाता है
यह दिन ,
आंकड़ों को टटोलते हुये
कभी कहता 1000 पर 945
कभी 33 प्रतिशत
कभी 18 प्रतिशत ,
इनमें हेरफेर से
हो जाता है
क्या समाज में परिवर्तन ?
बदल तो नही जाती
मानसिकता ,
प्रकृति की प्रकृति
और कुछ कुछ नियति,
कम तो नही होती
रोज की घटनायें
प्रताड़ना
गली सड़क पर
उछलते फिकरे
बसों में हाथों की हरकतें
भीड़ में ठेलमठेल
मां से शुरु होकर
बहन तक जाती गालियां
लड़कियों की पाबंदी
बचपन से स्त्री बनने का दबाव
और नुमाइश लड़की की
कुछ लोगों के सामने
जो आखिर पुरुष बन
 तय करता है
उसका भविष्य
अपनी शर्तों पर
रिवाजों की दुहाई देकर !
सदियों की मानसिकता ही तो
 कायम रखता है ,
कितनी ही उचाईयां छूकर भी
समाज की
प्रश्नवाचक दृष्टि
वक्रता कम नही होती
वह तीक्ष्ण होकर
कसौटियों के कांटे
  और बिछाकर कहता
अब!
पार होकर
दिखाओ तो जानें!
..............किरण राजपुरोहित नितिला

शनिवार, 6 मार्च 2010

तुम!!!!!!!........



तुम!!!!!!!........


न जाने किस
स्वर लहरी पर
 तुम आये और
प्रेम का निमंत्रण बन गये !
मौन अर्थ बने
अर्थ मेरे अभिव्यक्त
अभिव्यक्ति ने परिपूर्ण किया
शब्द को और
शब्द तरंग बने
 तरंग प्रेम
 और प्रेम जीवन ;
झंकृत किये है
  तुमने  मेरे हर पल
लेकिन आशंकित हूं ..........
न लौट जाना
हवाओं की तरह
 सूरज की तरह
 दिन रात की तरह
बस व्याप्त हो जाना
चहुं ओर
जैसे प्रकाश की किरणें
जैसे प्रीत के वचन
और हवा सनसन !
सर्वेश्वर हो जाना
शून्य की तरह और
भर देना
मेरे अंतर्मन के
खालीपन को
कि मैं
आकंठ डूबी रहूं
तुम में
तुम्हारी प्रीत  में !
......................................किरण राजपुरोहित नितिला

गुरुवार, 4 मार्च 2010

नन्ही परी

नन्ही परी
देख तेरे आंगन आई नन्ही परी              
हर तरफ से देखो
वह प्रेम से भरी,
सुनकर उसकी कोयल सी आवाज
चला आये तू उस आगाज़
जहां वह खेल रही
देख तेरे अँागन आई नन्ही परी,
वह ले जाती तुझे    
 किसी और लोक में
जब होती वह
तेरी कोख में
तेज आवाज सुन
वह दुनिया से डरी
देख तेरे आँगन
आई नन्ही परी,
रौनक वह आँचल
में लेकर आई,
पास है उसके
चंचलता की झांई
जिसके छूकर
तू हो गई हरी
देख तेरे आँगन
आई नन्ही परी ..... रुचि राजपुरोहित ’तितिक्षा                

बुधवार, 3 मार्च 2010

वह समय ऐसा होगा?

  वह समय ऐसा होगा?
तब तक
 यह समय नही रहेगा
 समय बदल जायेगा
हमेशा ऐसे ही थोड़ी रहेगा !
तब बेटियों की कद्र होगी !
रिवाज बदल जायेगें !
रीतियां बदल जायेगी !
कुरीतियां तो समूल नष्ट हो जायेगी !
बहुत अधिक सम्मान दिया जायेगा
बेटे बेटियों में तनिक न फर्क रहेगा
जन्मते ही बिटिया को खौलते कड़ाह में या
अफीम न सुंघाया जायेगा
भैंाडापन छिछोरापन की तो बू  न रहेगी
हर लड़की गाजे बाजे से ब्याहेगी
उसे सांझ ढले पाउडर क्रीम थोपकर
चौखट पर खड़े हेाकर
किसी पुरुष को इशारे से
 भीतर न बुलाना पड़ेगा,
 तब पिता भाई
 बहन बेटी को बेफिक्र होकर
 कॉलेज भेज सकेगें
भीड़ में यहां वहां हाथ न धरे जायेगें
बेटियंा बोझ  न होंगी
जवान होती बेटी के पिता को
जूतियां न घिसनी पड़ेगी,

पूरा घूंघट निकाले
घर का काम निबटा
ड्योढी में बैठी चरखा कातती
औरतें उसांस लेकर
धीमे धीमे बतियाती रहती
भरी दुपहरी,
तालाब के तीर
दम भर विश्राम करती
बतियाती

हमेशा ऐसे ही नही रहेगा
हम जैसी तकलीफें
हमारी लड़कियों को नही उठानी पडे़गी
तब लड़कियां हंसते हंसते ससुराल जायेगी
दहेज के ताने नही सुनने पड़ेगें
वह युग तो कुछ और ही होगा ,
क्या   ऐसा ही है?????
...............किरण राजपुरोहित नितिला