होता है....................
वर्तमान पल भर का होता है
शेष भूत भविष्य में बंटा होता है
मनुष्य तो वह पल भर होता है
शेष इर्ष्या दुख क्रोध का पता होता है
रंग प्रसन्नता का सुहाना होता है
दुख में हर रंग गहरा काला होता है
हर गीत की धुन लुभाती है
प्रतीक्षा घन के गान की होती है
सृष्टि का ध्रुव कोमल स्त्री है
हर नारी का त्याग उर्मिला होता है ...
.............किरण राजपुरोहित नितिला
सोमवार, 24 मई 2010
सोमवार, 3 मई 2010
कहना चाहती हूं
बहुत कुछ कहना चाहती हूं
जताना चाहती हूं
हवाओं से
गुलाबों से
खुश्बुओं से
जो मन में है
कि तुम क्या हो !!!!!!!!
मेरे जीवन में ,
पर
कुछ कहना चाहूं
तो
होंठ संकोच से
सिमट कर रह जाते है
चुप सी छा जाती है
अर्थों पर
और वह चुप्पी
बयां कर देती है
जो लफ़जों के बंधे किनारे
से बहुत अधिक
नीले आसमां तक
शून्य के चहुं ओर
फैल कर
पत्तों की
सर सर
भोर की खन खन
से भी अधिक
होती है !
तब सोचूं
तुम स्वर हो मेरे
और
मैं
तुम्हारा
मौन वर्णन !
.............किरण राजपुरोहित नितिला
जताना चाहती हूं
हवाओं से
गुलाबों से
खुश्बुओं से
जो मन में है
कि तुम क्या हो !!!!!!!!
मेरे जीवन में ,
पर
कुछ कहना चाहूं
तो
होंठ संकोच से
सिमट कर रह जाते है
चुप सी छा जाती है
अर्थों पर
और वह चुप्पी
बयां कर देती है
जो लफ़जों के बंधे किनारे
से बहुत अधिक
नीले आसमां तक
शून्य के चहुं ओर
फैल कर
पत्तों की
सर सर
भोर की खन खन
से भी अधिक
होती है !
तब सोचूं
तुम स्वर हो मेरे
और
मैं
तुम्हारा
मौन वर्णन !
.............किरण राजपुरोहित नितिला
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