रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मैं हूं...


मैं हूं...
मुस्कुराहट पर लरजती
आहटों पर खनकती हूं
सपनों सा सुहाना राज हूं
मानस का गुनगुनाता साज हूं
कविता का रंगमय नभ
बिरखा की तान बरतती हूं
मंदिर में दीपों की दीपिका
आस्था के मन की आरती हूं
कृष्ण में राधा की झांकी
मीरां के मन की बांसुरी हूं
रात का ताना प्रीत का
पिया के प्रेम की ओढनी हूं
चांद रात तारों की खिलखिल
नव सृष्टि की अठखेली हूं
नीरव निशा की आगम  आशा
जुगनू सी दिप दिप रोशनी हूं
अरुणोदय की नितिला मैं!
नव कलरव संग उगती हूं
..किरण राजपुरोहित नितिला

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

तुम साथ चल कर तो देखो!


ये सफर हसीन बन जायेगा
तुम साथ चल कर तो देखो
पथरीले रास्ते भी सरल लगेगें
अंधेरी रात में रोशनी मिलेगी
जुगनु भी चिराग बन रोशन होगें
तुम साथ चल कर तो देखो!!
दुनिया  साथ चलेगी झूमकर
तपती धूप भी सुहानी सुखकर
रास्ते खुद मंजिल का पता देगें
तुम हमसफर बन कर तो देखो
अपनों की भीड़ में गैर न मानो
यूं  बेकदरी से  न देखो ,सुनो!
जमाने का सताया सैलाब हूं
कुछ रहम  करके तो देखो!!
ये क्या तुम उठ कर चल दिये
मेरी तमन्ना का यकीं न किया
मैं साथी तुम्हारा हमसफर बनूंगा
एक बार यकीं करके तो देखो!!!
..किरण राजपुरोहित नितिला