बुधवार, 10 नवंबर 2010

तुम्हें पता है ???


तुम्हें पता है ???              कविता


बादलों की अनधुनी
अधधुली रुई
सिमटी है मेरे आंचल में
महसूस किया तुम्हें
मैंने और
भीगे तुम मेरे प्यार में
लहर लहर लहराये
 तुम्हारे इषारे
पत्तियों में छनती धूप की तरह
 मेरे हदय आंगन में
 समेट लिया
तुम्हारे छुए प्यार को
पवित्र ओस की तरह
 और सज गया एक फूल
 मेरे जीवन में
हूबहू तम्हारी तरह !!!!
तुम्हें पता है ???
 वो फूल
 अब भी
इर्द गिर्द ही है
मेरे !!....किरण राजपुरोहित नितिला

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

मेरा नन्हा दीया

मेरा नन्हा दीया
दीवाली की शाम सूरज
जब लौटकर अस्ताचल आया
मेरे नन्हे दीये को देख
मुग्ध हो मंद मंद मुस्कुराया,
मैंने अर्पित की कुछ उसे
किरणें सुनहरे प्रकाश की
हैरत से थाम,फिरा दिया
उसने जहां  अंधेरी रात थी,
सुखी वह धरा की गोद में
बरस की थकन मिटा रहा था
तिमिर दुबका  था ,मेरा
नन्हा दीया मुस्कुरा रहा था!!....किरण राजपुरोहित नितिला