रविवार, 25 अक्टूबर 2009
प्रकािश्त रचना
http://www.lakesparadise.com/madhumati/show_artical.php?id=1280
मधुमती में मेरी कहानी ‘‘छंटा कोहरा’’
मधुमती में मेरी कहानी ‘‘छंटा कोहरा’’
गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009
मेरी ताजा कृित
मेरी ताजा कृित
ये तैल चित्र ‘दीप ज्याेित ’ मािसक पित्रका के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपल्क्ष् में नवम्बर में आयाेिजत होने वाले समारोह में लगाया जासेगा।
जहां तमाम सािहतयकारों का आगमन होगा तथा पुस्तकों की विशाल प्रदर्शनी भी लगाई जासेगी।
ये तैल चित्र ‘दीप ज्याेित ’ मािसक पित्रका के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपल्क्ष् में नवम्बर में आयाेिजत होने वाले समारोह में लगाया जासेगा।
जहां तमाम सािहतयकारों का आगमन होगा तथा पुस्तकों की विशाल प्रदर्शनी भी लगाई जासेगी।
रोज शाम ...........................
जाने क्यूं
रोज शाम
सूरज धरती के पीछे
दुबकने लगता है,
खुशी से गले मिलते है
या चुपके से
सुबकने लगता है,
दिुनया की रंगत
दिन भर देख
बस निढाल हुआ जाता है,
छुपकर रिश्तों के
मायने
समझने लगता है,
चांद को
रात के पहरे पर बिठा
जरा दम लेता है,
तारों जड़ी चूनर ओढ
धरती चली
जुगनु की रुनक झुन पर
भोर के हाथ
चांदनी की पाती भेज
सहलाया क्ष्ािितज पर,
सितारों को उंघता देख
सोच में डूबा अंधेरा,
यूं न अधीर हो
जगद्त्राता!!
जीवनाधार!!
नितिला की प्रतीक्षा में है
समस्त प्राणी
रिष्मयों के रथ पर हो सवार
अब आओ !!.............
किरण राजपुराेिहत िनितला
नितिला -सूरज की पहली किरण
जाने क्यूं
रोज शाम
सूरज धरती के पीछे
दुबकने लगता है,
खुशी से गले मिलते है
या चुपके से
सुबकने लगता है,
दिुनया की रंगत
दिन भर देख
बस निढाल हुआ जाता है,
छुपकर रिश्तों के
मायने
समझने लगता है,
चांद को
रात के पहरे पर बिठा
जरा दम लेता है,
तारों जड़ी चूनर ओढ
धरती चली
जुगनु की रुनक झुन पर
भोर के हाथ
चांदनी की पाती भेज
सहलाया क्ष्ािितज पर,
सितारों को उंघता देख
सोच में डूबा अंधेरा,
यूं न अधीर हो
जगद्त्राता!!
जीवनाधार!!
नितिला की प्रतीक्षा में है
समस्त प्राणी
रिष्मयों के रथ पर हो सवार
अब आओ !!.............
किरण राजपुराेिहत िनितला
नितिला -सूरज की पहली किरण
सोमवार, 5 अक्टूबर 2009
छू कर मेरे मन को.....
-जब कोई प्िरतभाशाली हस्ती इस दुिनया में आती है तो उसे इस लक्षण से पहचाना जा सकता है कि सभी मूर्ख लोग उसके विरुद्ध उठ खड़े होते है।
-इंसान अभाव में जितना कष्ट नही पाता जितना फिजूलखर्ची से।
-शीघ्रता करना सफलता के मौके को खोना ।
-ताजमहल समय के गाल पर थमा हुआ आंसू है।- रिवन्द्रनाथ टैगोर
शनिवार, 3 अक्टूबर 2009
छू कर मेरे मन को.....
-तमाम विकृितयों और विसंगितयों के बावजूद हमारा गणतंत्र हमारी जनता अैर हमारे सामािजक , मानवीय सांस्कृितक मूल्यों पर टिका है।
-एक शिक्षक की गेंडें की खाल होनी चािहये । सम्मान के फूल और अपमान के तीरों का प्रभाव शिक्षक की खाल पर नहीं होना चािहये।
-प्रेम एक साथ एक को अिधकार औेर दूसरे को समर्पण किस प्रकार दे देता है।
-जो शिक्त अपने में नही होती उसे दूसरे में देख कर मनुष्य केा आश्चर्य हेाता ही है। आश्चर्य से मोह पैदा होता है।
-सभी लोग करारों के खुद को अचछे लगने वाले अर्थ करके दुनिया केा खुद केा अैार भगवान केा धेाखा देते है।
-प्राचीन काल में विद्यार्थी ब्रहमचारी ही कहलाता था।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)