झिलमिल रात
चंाद ने मुस्करा कर
तारों ने झिलमिला कर
खिलखिलाकर
रात का स्वागत किया
चांद तारे अैार रात
मिल कर गुनगुनाने लगे
चांदनी की लय पर
धरती झूमने लगी
रात रानी महकने लगी
नन्हे तारों से
झिलमिल हुई धरती
जुगनु से चमकती
दमकती चूनर ओढ़
यामिनी चली
ठुनक ठुनक
हौले हौले
गगन ने गवाक्ष से
झुक झुक चुपके से झांका
तेा रोका !
घड़ी पलक ठहर जाओ
घन का घनन घनन
गान सुनती जाओ!
-किरण राजपुरोहित नितिला
1 टिप्पणी:
Likhte rahiye.
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