मन से मनव्योम तक ----
दिखें-छिपें रवि-किरण ज्यों, रहीं धरा को आँक.कोई नवोढा ज्यों रही, अतिथि 'सलिल' को झाँक..
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दिखें-छिपें रवि-किरण ज्यों, रहीं धरा को आँक.
कोई नवोढा ज्यों रही, अतिथि 'सलिल' को झाँक..
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