ग़ज़ल
टूट कर गिरने से क्या होगा
आशा का दामन थामना होगा
रास्ते सदा न साफ नजर आएगें
कभी धुंध से भी सामना होेगा
किनारे बैठे ही क्या सोचें
पानी में पाँव डालना होगा
तन का ही मैल कितना धेायें
अंतस को फिर खंगालना होगा
जान चुके दुनिया को फिर भी
साँप को दूध पिलाना होगा
मन से चाहे दूर हो कितने
प्रकट में हाथ मिलाना होगा
भले कड़वाहटें हो रिश्तों में
फिर भी साथ निभाना होगा
दरारें कितनी हो दीवार में
बाहर लिपा दिखाना होगा...............किरण राजपुरोहित‘नितिला’
2 टिप्पणियां:
lajwaab gajal
kabile tarifffffffff
apaki gagal kabile tarif hay.
एक टिप्पणी भेजें