इक खयाल......
नहीं छूटता
कभी भी
नहीं भूलता
कही भी
इक खयाल!
जो चांदनी की
चादर की तरह
पसर गया है
मेरे मन मानस में
और बाहुपाश सा
नर्म गर्म
महकाता रहता है
मेरा ओर छोर
और गनगुनाती है
दिशा
एक मोहक धुन
सुनो!
तुम भी!..........किरण राजपुरोहित नितिला
1 टिप्पणी:
बहुत खूब - अति सुंदर.
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