वह समय ऐसा होगा?
तब तक
यह समय नही रहेगा
समय बदल जायेगा
हमेशा ऐसे ही थोड़ी रहेगा !
तब बेटियों की कद्र होगी !
रिवाज बदल जायेगें !
रीतियां बदल जायेगी !
कुरीतियां तो समूल नष्ट हो जायेगी !
बहुत अधिक सम्मान दिया जायेगा
बेटे बेटियों में तनिक न फर्क रहेगा
जन्मते ही बिटिया को खौलते कड़ाह में या
अफीम न सुंघाया जायेगा
भैंाडापन छिछोरापन की तो बू न रहेगी
हर लड़की गाजे बाजे से ब्याहेगी
उसे सांझ ढले पाउडर क्रीम थोपकर
चौखट पर खड़े हेाकर
किसी पुरुष को इशारे से
भीतर न बुलाना पड़ेगा,
तब पिता भाई
बहन बेटी को बेफिक्र होकर
कॉलेज भेज सकेगें
भीड़ में यहां वहां हाथ न धरे जायेगें
बेटियंा बोझ न होंगी
जवान होती बेटी के पिता को
जूतियां न घिसनी पड़ेगी,
पूरा घूंघट निकाले
घर का काम निबटा
ड्योढी में बैठी चरखा कातती
औरतें उसांस लेकर
धीमे धीमे बतियाती रहती
भरी दुपहरी,
तालाब के तीर
दम भर विश्राम करती
बतियाती
हमेशा ऐसे ही नही रहेगा
हम जैसी तकलीफें
हमारी लड़कियों को नही उठानी पडे़गी
तब लड़कियां हंसते हंसते ससुराल जायेगी
दहेज के ताने नही सुनने पड़ेगें
वह युग तो कुछ और ही होगा ,
क्या ऐसा ही है?????
...............किरण राजपुरोहित नितिला
3 टिप्पणियां:
Good Poem.
Pramod Tambat
Bhopal
www.vyangya.blog.co.in
बहुत खूबसूरत कल्पना है....और ये ख्वाहिश ना जाने कब से पल रही है....बदलाव तो आया है पर मानसिकता नहीं बदल पा रही है....दहेज का दानव और बड़ा आकार लेने लगा है...सुन्दर प्रस्तुति है
काश! आपका चाहा हो सके...लडकी ही नहीं लड़के को भी बड़ा फूहड़ सा लगता है पारंपरिक तरीके से जीवन साथी देखने जाना. आदिवासियों में तो घोटुल की स्वास्थ्य प्रथा है पर ह तथाकथित समझदारों में...?
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