शनिवार, 6 मार्च 2010
तुम!!!!!!!........
तुम!!!!!!!........
न जाने किस
स्वर लहरी पर
तुम आये और
प्रेम का निमंत्रण बन गये !
मौन अर्थ बने
अर्थ मेरे अभिव्यक्त
अभिव्यक्ति ने परिपूर्ण किया
शब्द को और
शब्द तरंग बने
तरंग प्रेम
और प्रेम जीवन ;
झंकृत किये है
तुमने मेरे हर पल
लेकिन आशंकित हूं ..........
न लौट जाना
हवाओं की तरह
सूरज की तरह
दिन रात की तरह
बस व्याप्त हो जाना
चहुं ओर
जैसे प्रकाश की किरणें
जैसे प्रीत के वचन
और हवा सनसन !
सर्वेश्वर हो जाना
शून्य की तरह और
भर देना
मेरे अंतर्मन के
खालीपन को
कि मैं
आकंठ डूबी रहूं
तुम में
तुम्हारी प्रीत में !
......................................किरण राजपुरोहित नितिला
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2 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत प्रेम पगी रचना...कोमल एहसासों की अभिव्यक्ति....बधाई
यह तो किसी नवगीत की तरह है...भाव मन को भाये...
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