नम आँखें
बोझिल नम आँखें
तलाश रही आशियाना,
ढूँढ -ढूँढ कर हैरान
जहां देखूँ
अनजाना आसमान,
ओस की बूँदों में
छिप-छिप कर हवायें
तेज हिलोरे दे रही
बरसात यूँ नहला रही
धूप यूँ सूखा रही,
पर रिमझिम से चमक रहे
रात के अंधियारे में
मेरी आशाओं के जुगनू
....रुचि राजपुरोहित तितिक्षा
2 टिप्पणियां:
"रिमझिम से चमक रहे
रात के अंधियारे में
मेरी आशाओं के जुगनू"
शुभकामनाएं
उम्दा अभिव्यक्ति!
एक टिप्पणी भेजें