वो...................
नही की जाती
अब प्रतीक्षा
अधीरता से
नही रहती
अब इंतजारी
उस मानुस की!!!!!!
जिससे एक अनोखा रिश्ता
बन जाता था
ढेर ढेर अभिव्यक्तियां
ढोता था अपनेपन से
नवाढो से बूढी मांयें
बाबूजी के बच्चों से लेकर
बच्चों के बाबूजी तक
निहारते थे
उसका रस्ता
उसका बस्ता
उम्मीद और इंतजारी को
परिपूर्ण करता था
बांचने को आतुर इबारतें
सुनने को व्यग्र अजीज
वे तकते थे उसका आना ,
कई कई घड़ियों के
हुलसते जीवन थे
उन कागजों में
बातें
शिकायतें
प्यार .याद
बधाई शुभकामना
आना जाना
राखी रुपये,
कभी कभी
तार लाता था
सुनकर ही सबकी
सांसें अटक जाती
न जाने इसमें
किसकी बदकिस्मती कैद है
होनी तो खैर होती
जब नम आंखों से तार पढता
उस तार का बोझ
कई दिन तक वह महसूसता
बूढे बाबूजी के कंधे पर हाथ रख
उन्हें सान्त्वना देता
तब बेटा सा बन जाता वह ,
प्रीतम की चिठ्ठी बांच
प्रियतमा की विरही भावनायें उकेरता
वह अंतरंग सखी बन जाता
भाभीसा को भाई की पाती देकर
जो ठिठोली करता
वह देवर से सकुचा जाती
साइकिल के चंचल पेंडल पर उछलता
नटखटिया आगे बढ जाता
भाभी नेह से निहारती रह जाती !
छुटकू का काका बन
ला देता शहर से
निब होल्डर पुस्तक,
आले में संभाले पड़े
पत्र
आत्मीय के साथ
डाकिये की भी स्मृति रखते
छ दिन साइकिल की टिन टिन सुन
एक दिन खाली सा लगता
लेकिन अब वह टिन टिन गायब है
हमारी दिनचर्या से
अब पत्र नही लिखे जाते
पुरानी बात हो गई
अतीत हो गये
अब नही प्रतीक्षा भी
गांव भर को
देवर
बेटा
सखी
सहारा
वह अधीरता का पिटारा
स्नेह का पात्र
वह अंजाना जो
हर एक का अलग ही
अजीज हो जाता था ,
अब है
झट से आते
इंतजार से रिक्त
असल व्यग्रता से दूर
जबरन ही टपके
आडंबर से भरे
उथले सतही
नकली मैसेज
जो कईयों को भेजे जाते
एक साथ
सर्वजन सुलभ की तरह
जानता है यह
पढने वाला भी
इसीलिये गहरे नही उतरते
और डिलिट हो जाते
मन से मानस और मशीन से !!!!!
...........किरण राजपुरोहित नितिला
4 टिप्पणियां:
nice picture
&
beautiful line....
सुंदर अभिव्यक्ति
"वाकई में जो बात पोस्टमेन के लाए उपहारों में थी वो अब न तो कूरियर में है और ना ही किसी दूसरे माध्यम में...भाव-विभोर रचना...."
नही की जाती
अब प्रतीक्षा
bahut sundar rachna
shekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/
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