फिसलने का डर चलने नही देता
गिरने का डर संभलने नही देता
दंगे बंदूकों की दहशत, बारिश में
बच्चे को अब मचलने नही देता
सफेद लिबास उदास सूनी आंखें
आईना उसे अब संवरने नही देता
पींगें उमंगें मन में बहुत उठती पर
खूंटा उसको उछलने नही देता
हाथ बढाती है खुशियां अक्सर
समाज का डर संभलने नही देता .......
किरण राजपुरोहित नितिला
3 टिप्पणियां:
bas ye dar hi he jo hame kuch karne nahi deta
fir bhi hame us dar se nahi darna jo samj ke liye galat he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
वाह बेहतरीन है जी
सफेद लिबास उदास सूनी आंखें
आईना उसे अब संवरने नही देता
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं ...
सफेद लिबास उदास सूनी आंखें
आईना उसे अब संवरने नही देता
सुन्दर रचना है !
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