बहुत कुछ कहना चाहती हूं
जताना चाहती हूं
हवाओं से
गुलाबों से
खुश्बुओं से
जो मन में है
कि तुम क्या हो !!!!!!!!
मेरे जीवन में ,
पर
कुछ कहना चाहूं
तो
होंठ संकोच से
सिमट कर रह जाते है
चुप सी छा जाती है
अर्थों पर
और वह चुप्पी
बयां कर देती है
जो लफ़जों के बंधे किनारे
से बहुत अधिक
नीले आसमां तक
शून्य के चहुं ओर
फैल कर
पत्तों की
सर सर
भोर की खन खन
से भी अधिक
होती है !
तब सोचूं
तुम स्वर हो मेरे
और
मैं
तुम्हारा
मौन वर्णन !
.............किरण राजपुरोहित नितिला
5 टिप्पणियां:
नीले आसमां तक
शून्य के चहुं ओर
फैल कर
पत्तों की
सर सर
भोर की खन खन
से भी अधिक
होती है !
तब सोचूं
तुम स्वर हो मेरे
और
मैं
तुम्हारा
मौन वर्णन !
bahut hi nayab lekhni hai aapki kalam ko salaam...
सुन्दर रचना !
sahi he bahut kuch janna chahte he
dekhana chahte he
bahut bahut badhai
shekhar kumawat
nice one mam !!!
aapka blog dekha to hum aapke kayal hue.nasa es kadar saya aapke blog ka. hum padhte padhte ghayal hue.salaam kiran ji aapko ki net par bethe duniya ka safar suru huaa; ab aage dekhte hai.............................. salut
एक टिप्पणी भेजें