दोस्तों के चेहरे
अजब स्याह से है
कभी धुले
धुंधले नजर आते है
हर कोशिश
ज्वार सी उठती
हर सांस
लहर हो जाती
इक चेहरा ढूंढा
संकरी गलियों में
कभी दिखता
कभी धूप हो जाता
भटका रहा उम्मीदों में
सुकून मिला
नीम की छाया में ....
किरण राजपुरोहित नितिला
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर!
खूबसूरत एहसास
बहुत सुन्दर , कभी धुले कभी धुंधले नजर आते हैं , कभी धूप हो जाते हैं , सुकूँ मिला नीम की छाया में , ...कड़वी ही सही छाया तो सुखद है ।
किरण जी ,
सादर प्रणाम !
आप के ब्लॉग पे पहली बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ,
सुंदर कविताए पढने का मिली , साधुवाद
आभार !
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