शुक्रवार, 5 जून 2009


छू कर मेरे मन को

- भलाइयों में जितना द्वेष होता है बुराइयों में उतना ही प्रेम। विद्वान, विद्वान को देखकर ,कवि कवि को देखकर जलता हेै।पर जुआरी जुआरी को ,चोर चोर को देखकर ,शराबी शराबी को देखकर सहानुभूति दिखाता है। चोर, चोर पर आई आफत को देखकर मदद करता है पर विद्वान लोग दूसरे विद्वान को गिरा देखकर खुश होते है। बुराई से सब घृणा करते है इसलिये बुरों में परस्पर प्रेम होता है। भलाई की सारा संसार प्रशंसा करता है इसलिये भलों में विरोध होता है।


-रुई सी मुलायम वस्तु भी दबकर कठोर हो जाती है।


-इष्र्या में अग्नि है परंतु अग्नि का गुण उसमें नहीं।वह मन को फैलाने के बदले और संकीर्ण कर देती है।


-चोरी की कलम में यमराज निपुण है उनकी नजर कीमती चीज पर पड़ती है।


-अनादर नाम की चीज राख की तरह होती है वह शायद भीतर ही भीतर आग को बनाये रहती है लेकिन उपर सेउसके ताप को प्रकट नहीं होने देती।


-बुराई की जड़ जमने के लिये इतना ही काफी है कि अच्छे लोग कुछ ना करे।