गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

मेरी ताजा कृित

मेरी ताजा कृित 
ये तैल चित्र ‘दीप ज्याेित ’ मािसक पित्रका के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपल्क्ष् में नवम्बर में आयाेिजत होने वाले समारोह में लगाया जासेगा।
जहां तमाम सािहतयकारों का आगमन होगा तथा पुस्तकों की विशाल प्रदर्शनी भी लगाई जासेगी।


रोज शाम ...........................
जाने क्यूं
रोज शाम
सूरज धरती के पीछे
दुबकने लगता है,
खुशी से गले मिलते है
या चुपके से
सुबकने लगता है,
दिुनया की रंगत
दिन भर देख
बस निढाल हुआ जाता है,
छुपकर रिश्तों के
मायने
समझने लगता है,
चांद को
रात के पहरे पर बिठा
जरा दम लेता है,
तारों जड़ी चूनर ओढ
धरती चली
जुगनु की रुनक झुन पर

भोर के हाथ
चांदनी की पाती भेज
सहलाया क्ष्ािितज पर,
सितारों को उंघता देख
सोच में डूबा अंधेरा,
यूं न अधीर हो
जगद्त्राता!!
जीवनाधार!!
नितिला की प्रतीक्षा में है
समस्त प्राणी
रिष्मयों के रथ पर हो सवार
अब आओ !!.............
किरण राजपुराेिहत िनितला

नितिला -सूरज की पहली किरण