रविवार, 31 जनवरी 2010

इक खयाल......

नहीं छूटता
कभी भी
नहीं भूलता
कही भी
इक खयाल!
जो चांदनी  की
चादर की तरह
पसर गया है
मेरे मन मानस में
और बाहुपाश सा
 नर्म गर्म
महकाता रहता है
मेरा ओर छोर
 और गनगुनाती है
दिशा
एक मोहक धुन
 सुनो!
तुम भी!..........किरण राजपुरोहित नितिला

कविता


इक पल.......
इक नन्हा सा पल
 हो ,जो खोल दे
नये द्वार
नया राग
 इक मिठास के साथ
 जो घुलती रहे उम्र भर
 सहज मित्रों में
और
 दिप दिप रोशन होता रहे
मन आंगन
मह मह महकता रहे
मानसाकाश
स्वच्छता की धूप
खिल खिल कर
खोल दे
 विचारों के नये सोपान
...............किरण राजपुरोहित   नितिला