बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

नम आँखें

नम आँखें
बोझिल  नम आँखें
तलाश रही आशियाना,
ढूँढ -ढूँढ कर हैरान
जहां देखूँ
अनजाना आसमान,
ओस की बूँदों में
छिप-छिप कर हवायें
तेज हिलोरे दे रही
बरसात यूँ नहला  रही
धूप  यूँ सूखा रही,
पर रिमझिम से चमक रहे
रात के अंधियारे में
मेरी आशाओं के जुगनू
....रुचि राजपुरोहित तितिक्षा