बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
उसका रंग कैसे भूलूं?
हर तरफ रंग है
हर कोई
रंग की बात कर रहा
सब रंगों से सरोबार है
रंग ही जीवन है
जीवन के लिये रंग है
पर
मेरा मन जाता उस ओर
जहां रंगों से
भरपूर खेली
लाल जोड़े में सजकर
गुलाबी रातें में निखर कर
हर रंग की खुशियां की रानी थी ,
किन्तु
अब
हाथों में रंग खोजती
नीले आसमां में कुछ तलाशती ,
सुनहरी भोर में झुलसती
रंगमयी सांझ में तपती
रंगों का अर्थ समझकर
आज बनी है अनजान
सफेद लिबास पहन कर !!!
एक रंग चुना है
उसके लिये
समाज ने
सफेद !सफेद !सफेद!
व्याख्या कहती है
सफेद है शांति
शांति में प्रेम
प्रेम में आनंद
आनंद में सब रंग
और सब रस
ही है
सृष्टि का मर्म ,
पर उसका सफेद रंग
कहता है
निर्लिप्त
वीतराग
दुख
पलायन
इच्छाओं की हत्या
एक कोना
और उसका अंधेरा
जीवन भर
काला गहरा!
एक जीवन
होनी के हाथों समा गया
और
एक जीवन
समाज लील लेने पर है उतारु
क्या होता यदि इसके विपरीत होता !!
......................किरण राजपुरोहित नितिला
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
कुछ मैं कहूं मुझसे ...........
कंकड़ उछालना
प्रकृति है उनकी
मैं देती हूं उससे
अपनी नींवों को मजबूती !
इसी डगर पड़ सकता है
कभी लौट आना
चलते हुये भी
कांटे हटाते जाना !
अजाने ही सांप को
दूध पिलाते हैं
फिर भी संभले
वही सयाने है!
शब्दों से तो
कम ही काम लेना
मन ही में गिनकर
गांठ बांध लेना !
तुम ही तो कहते थे
ठीक नही अविश्वास इतना
अब कहते हो
मौका देखकर झट रंग बदलना!
.................किरण राजपुरोहित नितिला
छू कर मेरे मन को
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
छू कर मेरे मन को
.............. पक्षियों का कलरव शोर नही कहलाता क्योंकि जिस रव में अपनों से मिलने की उत्कंठा हो ,अपनों को सम्हालने का भाव हो सहयोग एवं प्रेम की उत्कठ पुकार हो वो शोर कैसे होगा।
...........पुस्तकें वे तितलियां है जो ज्ञान के पराकणें को एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक ले जाती है।
............इस दुनिया में कुत्ता ही एक मात्र प्राणी है जो हमें स्वयं से अधिक प्यार करता है।
...........पुस्तकें वे तितलियां है जो ज्ञान के पराकणें को एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक ले जाती है।
............इस दुनिया में कुत्ता ही एक मात्र प्राणी है जो हमें स्वयं से अधिक प्यार करता है।
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
ईर्ष्या
ईर्ष्या
ईर्ष्या एक सहज भावना है और ईर्ष्यालु होना भी समान्य सी बात है लेकिन
एक ईर्ष्या होती है जो सफल लोगों के मूल्य अपनाकर हमें उनकी तरह बनने के लिए प्रेरित करती है ।यह ईर्ष्या का रचनात्मक पक्ष है जो किसी भी संस्कृति के विकास में संलग्न रचनात्मक लोगों केा आग बढने के लिए प्रेरित करता है।
ईर्ष्या की दूसरी किस्म नकारात्मक ईर्ष्या है जिसमें लोग दूसरों की सफलता से कुढते है और उनके खिलाफ नफरत से भरकर नकारात्मक कार्रवाई करने लगते है। ये नुकसानदेह होती है
अत यह जरुरी है कि न सिर्फ खुद दूसरों के प्रति ईर्ष्या करने से बचें बल्कि खुद को दूसरों की ईर्ष्या से सुरक्षित रखना भी सीखें। तब तक ईर्ष्या अपने रास्ते में रोड़ा नही अटकाती तब तक सब ठीक है लेकिन जब दूसरे हमारे खिलाफ अफवाहें फैलाएं हमारी सफलता को कम करने का प्रयास करे या कामयाबी की राह में रोड़े अटकानें लगें तो हम क्या करेगें?
तो उसके पास जाकर उसकी शुभकामनाएं लीजिये। उन्हें इसका एहसास कराइए कि हम उनके अधिकार क्षेत्र का हरण नही कर रहे है। अगर यह पैंतरा कामयाब न होतेा याद रखें कि उनके विरोध के कारण आपकी छवि निखरती जाती है । हिटलर ने यहूदियों का जबर्दस्त विरोध करके उनकी पहचान को मजबूत कर दिया। अनजानें मंे ही उसने उनकी पहचान को एक निश्चित स्वरुप दे दिया।
विरोधी से जूझने का एक तरीका यह है कि कोई प्रतिक्रया ही न की जाए। बेहतर होगा कि हम सामने वाले से बदला लेने की बजाय खुद को और अधिक मजबूत बनाएं। बदला लेने मंे हमारा वक्त जाएगा। ताकत कम होगी और तनाव बढेगा। दूसरों की ईर्ष्या से निपटने के लिए सबसे अहम बात यह जानना है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति हमारे विचारो को खारिज करने के लिए कौनसे कदम उठाएगा। घाघ सबसे पहले तो हमारे विचारों की उपेक्षा करेगा। अगर उपेक्षा से वा खत्म हो गए तो ठीक है वरना वह हमारी बुराई करना शुरु कर देगा। अगर बुराई से भी काम नही चला तो फिर घाघ के पास उसे हमें अपनाने के अलावा कोई चारा नही रह जाता । अत जब भी हमारे किसी विचार की उपेक्षा की जाए उसे बीच में ही छेाड़ने की गलती कभी न करे। जिस समय उसकी बुराई हो तो हम प्रतिक्रया न करें क्योंकि हमारी रचनात्मकता को वांछित सम्मान जरुर मिलेगा । साथ ही अपनी दौलत और जीवनशैली के बारे में अपने से कमजोर लोगों की बीच श्ेाखी बघार कर ईर्ष्या पैदा करने की गलती न करंे। इसकी बजाय ईर्ष्यालु आदमी के सामने अपनी मुश्किलों की बात करके उसकी ईर्ष्या को कम करने की कोशिश करनी चाहिये। ..............अहा! जिंदगी से
ईर्ष्या एक सहज भावना है और ईर्ष्यालु होना भी समान्य सी बात है लेकिन
एक ईर्ष्या होती है जो सफल लोगों के मूल्य अपनाकर हमें उनकी तरह बनने के लिए प्रेरित करती है ।यह ईर्ष्या का रचनात्मक पक्ष है जो किसी भी संस्कृति के विकास में संलग्न रचनात्मक लोगों केा आग बढने के लिए प्रेरित करता है।
ईर्ष्या की दूसरी किस्म नकारात्मक ईर्ष्या है जिसमें लोग दूसरों की सफलता से कुढते है और उनके खिलाफ नफरत से भरकर नकारात्मक कार्रवाई करने लगते है। ये नुकसानदेह होती है
अत यह जरुरी है कि न सिर्फ खुद दूसरों के प्रति ईर्ष्या करने से बचें बल्कि खुद को दूसरों की ईर्ष्या से सुरक्षित रखना भी सीखें। तब तक ईर्ष्या अपने रास्ते में रोड़ा नही अटकाती तब तक सब ठीक है लेकिन जब दूसरे हमारे खिलाफ अफवाहें फैलाएं हमारी सफलता को कम करने का प्रयास करे या कामयाबी की राह में रोड़े अटकानें लगें तो हम क्या करेगें?
तो उसके पास जाकर उसकी शुभकामनाएं लीजिये। उन्हें इसका एहसास कराइए कि हम उनके अधिकार क्षेत्र का हरण नही कर रहे है। अगर यह पैंतरा कामयाब न होतेा याद रखें कि उनके विरोध के कारण आपकी छवि निखरती जाती है । हिटलर ने यहूदियों का जबर्दस्त विरोध करके उनकी पहचान को मजबूत कर दिया। अनजानें मंे ही उसने उनकी पहचान को एक निश्चित स्वरुप दे दिया।
विरोधी से जूझने का एक तरीका यह है कि कोई प्रतिक्रया ही न की जाए। बेहतर होगा कि हम सामने वाले से बदला लेने की बजाय खुद को और अधिक मजबूत बनाएं। बदला लेने मंे हमारा वक्त जाएगा। ताकत कम होगी और तनाव बढेगा। दूसरों की ईर्ष्या से निपटने के लिए सबसे अहम बात यह जानना है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति हमारे विचारो को खारिज करने के लिए कौनसे कदम उठाएगा। घाघ सबसे पहले तो हमारे विचारों की उपेक्षा करेगा। अगर उपेक्षा से वा खत्म हो गए तो ठीक है वरना वह हमारी बुराई करना शुरु कर देगा। अगर बुराई से भी काम नही चला तो फिर घाघ के पास उसे हमें अपनाने के अलावा कोई चारा नही रह जाता । अत जब भी हमारे किसी विचार की उपेक्षा की जाए उसे बीच में ही छेाड़ने की गलती कभी न करे। जिस समय उसकी बुराई हो तो हम प्रतिक्रया न करें क्योंकि हमारी रचनात्मकता को वांछित सम्मान जरुर मिलेगा । साथ ही अपनी दौलत और जीवनशैली के बारे में अपने से कमजोर लोगों की बीच श्ेाखी बघार कर ईर्ष्या पैदा करने की गलती न करंे। इसकी बजाय ईर्ष्यालु आदमी के सामने अपनी मुश्किलों की बात करके उसकी ईर्ष्या को कम करने की कोशिश करनी चाहिये। ..............अहा! जिंदगी से
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
नम आँखें
नम आँखें
बोझिल नम आँखें
तलाश रही आशियाना,
ढूँढ -ढूँढ कर हैरान
जहां देखूँ
अनजाना आसमान,
ओस की बूँदों में
छिप-छिप कर हवायें
तेज हिलोरे दे रही
बरसात यूँ नहला रही
धूप यूँ सूखा रही,
पर रिमझिम से चमक रहे
रात के अंधियारे में
मेरी आशाओं के जुगनू
....रुचि राजपुरोहित तितिक्षा
बोझिल नम आँखें
तलाश रही आशियाना,
ढूँढ -ढूँढ कर हैरान
जहां देखूँ
अनजाना आसमान,
ओस की बूँदों में
छिप-छिप कर हवायें
तेज हिलोरे दे रही
बरसात यूँ नहला रही
धूप यूँ सूखा रही,
पर रिमझिम से चमक रहे
रात के अंधियारे में
मेरी आशाओं के जुगनू
....रुचि राजपुरोहित तितिक्षा
सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
ओ मेरी सखी !!!!!
लड़कपन की स्मृति
स्नेहिल पुस्तक !
लिखे थे -जो
निष्कपट
निष्कलुष स्नेह के पृष्ठ
हमने
उन पृष्ठों में
बांचती हूं आज भी
दो रिबन फूलों वाली चोटियां
वो नीली स्कर्ट
घेर घूमेर होती !
बांचती हूं
वो भोली पर सरस बातें
वो हंसी ठिठोली
जो शाला के बाद भी
गुदगुदाती थी ,
मुहल्ले की सखियों में भी
जानी पहचानी थी
तुम सखी!
बातों की डोर से
वो भी बंध गई थी
तुमसे सखी,
पर
भीगती है आंखें
उस पृष्ठ पर आकर
जब मेरी भूल
अपने माथे ले खड़ी हुई थी
धूप में
पूरे दिन !!!
कुछ भी कहने न दिया
बस सहती रही सजा
सखी का कष्ट
असहय जो था तुम्हें ,
और मैं ?
मैं आज तक
अपराध बोधित सी
वह पृष्ठ
रोज बांचती हूं
कटघरे में खड़ी हूं
आज भी !
सोचती हूं
क्यूं मूक दर्शक बनी रही ,
सखी!
तुम्हारे नेह से अभिभूत हूं
आज तक,
भीगा रहता है
मेरा मन
आज भी
--------किरण राजपुरोहित नितिला
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
कविता
किया जाये......
जाते हुये को
एक मुस्कुराहट से
विदा किया जाये जो
कहा सुना
उसे माफ किया जाये ,
बीती कड़वी बातों को
उड़ाकर
मीठी बातों को दिल से
लगाकर
जाते हुये को
थोड़ा रोक लिया जाये
जो खता गुनाह हो
माफ किया जाये ,
सभी दोस्त वापिस मिले
जरुरी नही
मन में फिर ऐसा गुल खिले
जरुरी नही
दोस्तों को रिश्तों में
न बांधा जाये
जो शिकायत हो
भुला दी जाये,
दिल की हर गांठ
जुबां पर
नही लाई जाती
गुस्ताखियां तो
अनचाहे ही हो जाती
हर कूसूर को
दिल पर न लगाया जाये ,
जो नाराजगियां है
सफा की जाये!!!
..............किरण राजपुरोहित नितिला
जाते हुये को
एक मुस्कुराहट से
विदा किया जाये जो
कहा सुना
उसे माफ किया जाये ,
बीती कड़वी बातों को
उड़ाकर
मीठी बातों को दिल से
लगाकर
जाते हुये को
थोड़ा रोक लिया जाये
जो खता गुनाह हो
माफ किया जाये ,
सभी दोस्त वापिस मिले
जरुरी नही
मन में फिर ऐसा गुल खिले
जरुरी नही
दोस्तों को रिश्तों में
न बांधा जाये
जो शिकायत हो
भुला दी जाये,
दिल की हर गांठ
जुबां पर
नही लाई जाती
गुस्ताखियां तो
अनचाहे ही हो जाती
हर कूसूर को
दिल पर न लगाया जाये ,
जो नाराजगियां है
सफा की जाये!!!
..............किरण राजपुरोहित नितिला
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
छूकर मेरे मन को----------
पुरुष अथाह पानी को रोके खड़े बांध की तरह अपने दुखों को खुद में समाये रहता है । आसानी से न तो अपने भीतर किसी को झांकने देता है न ही दूसरे पुरुष का आसानी से आत्मीय बन पाता है परन्तु स्त्री की प्रकृति नाले के बंध की तरह होती है । तनिक प्रवाह से तट टूट जाते हैं। यही कारण है कि स्त्रियां पुरुषों की तुलना में अधिक जल्दी आत्मीय बन जाती है और दूसरे को आसानी से आत्मीय बना भी लेती है। इसी में स्त्रियों की सहनशीलता व लंबी आयु का राज छुपा है।
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
ऐसा भी होगा..............
ऐसा भी होगा..............
जिदंगी इतनी आसान
न होगी
हर मोड़ पर
कसौटियां होगी ,
उम्मीद से पहले
सोचना होगा
रिश्तों में कुछ
खामियां होगी ,
बहुत मुश्किल है
सब को खुश रखना
कहीं न कहीं
नाराजगियंा होगी,
मुस्कुराहट
हरदम साथ न होगी
कभी साथी
सिसकियां होगी,
किनारा ही न
मिलेगा सदा
मझधार में किश्तिया होगी
..........किरण राजपुरोहित नितिला
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
कविता
इक यह करना!!!
स्मृतियों को बस जिंदा रखना
अतीत से एक रिश्ता रखना
कितनी भी दूर चले जाओ
मिलने की एक जगह रखना
जीवन जायका कम न होगा
दिल में मीठी याद रखना
नन्हे नादान की भोली जिद
और बुजुर्गों की बात रखना
.........किरण राजपुरोहित नितिला
स्मृतियों को बस जिंदा रखना
अतीत से एक रिश्ता रखना
कितनी भी दूर चले जाओ
मिलने की एक जगह रखना
जीवन जायका कम न होगा
दिल में मीठी याद रखना
नन्हे नादान की भोली जिद
और बुजुर्गों की बात रखना
.........किरण राजपुरोहित नितिला
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