शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ये क्यूं हो गया ........



ये क्यूं हो गया ........

जी भरकर खेली भी न थी
पापा की गोदी में
लडाया ही न था मां ने
 भरपूर अपनी बांहों में!
 दादी की दुलार ने
थपका भी न था अभी
दादा ने उंगली थाम
कुछ दूर ही चलाया था!
 जीजी की छुटकी  अभी
मस्ती में उछली न थी
छोटू का दूध झपट कर
पिया न था जी भर कर!
छुटकी के खिलौनों से
कुढ़  ही तो रही थी
भैया के चिकोटी के निशां
 अभी ताजे ही तो थे,
 बाजू से  उसके मेरे दांतों
की ललाई छूटी न थी
 ठुनक ठुनक कर जिद से
रोना मनमानी में और
 खुश हो कर दादा के
गले लगती ही थी  !
सहेली की धौल याद थी
उसकी कुट्टी अभी भूली न थी
नई फ्रॉक न आने पर
 मचलना जारी ही था
उछल कर भइसा की गोद में
चढना यूं ही चल रहा था !
पड़ोस के भैया को
बहाने  खोजती थी चिढाने के
पड़ोसन चाची को डराना
चुपके से, चल ही रहा था
संतोलिया छुपाछुपी का रंग
अभी चढ़ ही रहा था
गड्डे कंचे अभी स्कर्ट की
 जेब में चिहुंक ही रहे थे !
आंगन में चहक
शुरु ही हुई थी
मां की लाड़ली  गोरैया
कहां मस्त फुदकी थी ,
महसूस ही तो न किया था
मन भर ना ही जिया था
जो अनमोल था उसे
सहज ही तो लिया था
इतना तो सोचा भी न था
और ....और..........
और ....सबकी नजरें बदल गई
नसीहतें बरसने लगी !
कुछ सीखो !
कब सीखोगी !
यहां मत जाओ !
उससे बात न करो !
इस तरह मत हंसा करो!
सब कहते संभल कर रहो !
यह मत पहनो !नजर नीची रखो !
क्यूं कि ------क्यूं कि
अब तुम बड़ी हो गई हो!!!!!!!!!
..............किरण राजपुरोहित नितिला