गुरुवार, 28 मई 2009



छू कर मेरे मन को
-भीड़ के अनेक सिर होते हैं लेकिन दिमाग किसी में नहीं।

-डर के पांव पीछे होते हैं। तन कर खड़े होने पर वही पीछे भाग जाता है।

-आंखें सबकी एक सी नहीं होती क्योंकि आंखों से देखने का विचार सबका अलग-अलग होता है।

-मित्र बनते बिगड़ते रहते है परन्तु शत्रु जस के तस रहते है।

-मनुष्य की रुचि उसके चरित्र का प्रस्तावना होती है।

-कठोरता कमजोर व्यक्ति की झूठी ताकत होती है।

-हम उपदेश सुनते है मन भर, देते है तन भर और ग्रहण करते है कण भर।


वेा अब कहां........???

भागता ही जा रहा है
 अंधा जमाना 
जाना कहां लेकिन 
पहुंचेगा कहां ?

मसरुफियत में है हर शख्स
 नहीं पता अब
वो अपना कहां ?
दूर दूर हो रही है
 दूरियां सभी
 अब वो मीठी सी 
नजदीकियां कहां ,

धुंए का गुबार
 भरा है पिंजर में 
शेार में हम न जाने 
गुम हुए कहां, 

दब कर उदास है 
वो सुहाने बचपन 
कागज कि तैरती 
वो नइया कहां ,

नही रोता मन अब
गैर की तकलीफ से
 आंखों का वो पानी 
वो हिचकियां कहां ,

 रिश्तों पर खुदगर्जी 
का नशा है 
देवर भाभी की वो 
ठिठोलियां कहां ,
तेलों के रंग हुए 
दीप बिजली के
 मौली होली वो 
दीपावलियां कहां??????

..........................किरण राजपुरोहित नितिला