

वेा अब कहां........???
भागता ही जा रहा है
अंधा जमाना
जाना कहां लेकिन
पहुंचेगा कहां ?
मसरुफियत में है हर शख्स
नहीं पता अब
वो अपना कहां ?
दूर दूर हो रही है
दूरियां सभी
अब वो मीठी सी
नजदीकियां कहां ,
धुंए का गुबार
भरा है पिंजर में
शेार में हम न जाने
गुम हुए कहां,
दब कर उदास है
वो सुहाने बचपन
कागज कि तैरती
वो नइया कहां ,
नही रोता मन अब
गैर की तकलीफ से
आंखों का वो पानी
वो हिचकियां कहां ,
रिश्तों पर खुदगर्जी
का नशा है
देवर भाभी की वो
ठिठोलियां कहां ,
तेलों के रंग हुए
दीप बिजली के
मौली होली वो
दीपावलियां कहां??????
..........................किरण राजपुरोहित नितिला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें