बुधवार, 6 जनवरी 2010



सोच ( लघु कथा)
‘‘आइये आइये!श्रीमती शर्मा,बहुत दिनों बाद दिखाई दी।कहिए क्या हालचाल है,बिटिया का रिश्ता तय हुआ कहीं?’’
‘‘अरे कहां....आप तो जानती ही हैं अच्छे लड़के आजकल कहाँ मिलते हैं?कहीं घर में कमी,कहीं लडके में कमी। नाजों पली बेटी है,हर कहीं तो नहीं दे सकते ना ।’’
‘‘ लेकिन पिछले दिनों मैंने जो लड़का बताया उसका क्या हुआ? बढ़िया नौकरी,सुंदर लड़का,भरा पूरा घर,मां- बाप बहन भाई सब कुछ तो....’’
’’ना बाबा न,कहाँ माँ- बाप ,भाई- बहन के बड़े परिवार में झोंक दूं बेटी को? मैं तो ऐसा लड़का ढूंढ रही हूं जिसके परिवार की कोई जिम्मेदारी न हो,अच्छी नौकरी हो। अपना कमाए,अपना खाए और बिटिया को फूल सी रखे,बस। ये भाई बहिन ,सास ससुर की सेवा मेरी बेटी से नहीं होने वाली। अरे!उनके खेलने खाने के दिन है न कि झंझट में पड़ने के.....’’
‘‘लेकिन हर लड़के के मँा बाप,परिवार सब कुछ तो तो होगा ही।वो भी तो अपने बेटे बहू से आस लगाए होंगे ना ।’’
‘‘अरे !नहीं ,बिटिया प्रथम श्रेणी एम बी ए है,सिर पर पल्ला ओढे़ सबकी चाकरी नहीं करने वाली। आजाद खयाल की लड़की है, जिंदगी बेरोकटोक गुजारना चाहती है।..’’
‘‘खैर.. आपके बेटे की भी तो नौकरी लग चुकी है।उसकी शादी कब करने का विचार है?’’
‘‘अरे अच्छी लडकी मिल जाए तो आज ही शहनाई बजवा दूँ । मुझे तो पढ़ी लिखी ,अच्छे संस्कारो वाली, सीधी सादी बहू चाहिए जो आते ही घर संभाल ले अैर मुझे घर के कामों से छुट्टी दे दे बस। आप तो जानती ही हैै आजकल की लड़कियां घर के काम तो करना ही नहीं चाहती। आते ही पति पर न जाने क्या मंत्र फूंकती है कि बेटा तो समझो गया हाथ से ।एक ही तो बेटा है हमारा ।सारी पँूजी लगाकर पढ़ाया है। बहुत कुछ सोच रखा है हमने अपने बेटे बहू से हमारे भविष्य के लिए।’’ ‘‘....!!!!!???’’..............................................किरण राजपुराेिहत नितिला