मंगलवार, 8 जून 2010

दोस्तों के चेहरे
अजब स्याह से है
कभी धुले
धुंधले नजर आते है
हर कोशिश
ज्वार सी उठती
हर सांस
लहर हो जाती
इक चेहरा ढूंढा
संकरी गलियों में
कभी दिखता
कभी धूप हो जाता
भटका रहा उम्मीदों में
सुकून मिला
नीम की छाया में ....
किरण राजपुरोहित नितिला