ओ! चित्रकार
रंगों संग चलने वाले
आकृतियों में ढ़लने वाले
भावों के साकार ओ! चित्रकार
सृष्टि से रंग चुराकर
मौन को कर उजागर
रचते हो संसार ओ! चित्रकार
खिल उठते हैं वीराने
जी जाते सोये तराने
बजते सुर झंकार ओ! चित्रकार
रंगमय हो जाते रसहीन
सवाक् हो जोते भावभीन
रीते को देते प्रकार ओ! चित्रकार