बुधवार, 15 जुलाई 2009


तुमको मैंने!!!!़़़़़़़़़़़़़़़़़............

दुनिया की भीड़ में
जब भी अकेली हुई मैं
साथी बना पाया तुमको,
अंधेरी रात में एकाकी हुई
चांद बने पाया तुमको,
चिलचिलाती धूप ने झुलसाया
छांव बने पाया तुमको !!!
सावन की तपन ने घेरा
रिमझिम बरसे पाया तुमको !
गीत लिखा जब भी कोई
कलम ने हर बार गाया तुमको
सितार हुआ मिजराब से झंकृत
हर सुर में पाया तुमको
बंद बांखों की खिड़की से झांका
अपने ही भीतर पाया तुमको!!!!!!!!!!!
...........ििकरण राजपुरोिहत ििनितला