तुम्हें पता है ??? कविता
बादलों की अनधुनी
अधधुली रुई
सिमटी है मेरे आंचल में
महसूस किया तुम्हें
मैंने और
भीगे तुम मेरे प्यार में
लहर लहर लहराये
तुम्हारे इषारे
पत्तियों में छनती धूप की तरह
मेरे हदय आंगन में
समेट लिया
तुम्हारे छुए प्यार को
पवित्र ओस की तरह
और सज गया एक फूल
मेरे जीवन में
हूबहू तम्हारी तरह !!!!
तुम्हें पता है ???
वो फूल
अब भी
इर्द गिर्द ही है
मेरे !!....किरण राजपुरोहित नितिला