प्रियतम तुम......................
जबसे हुये हो
तुम
दृष्टि से ओझल
इन नैनों में बस गये हो,
पलकों केा क्यूं झपकाउं मैं
स्वपन में भी बसे हो
तुम
हाथ छुड़ा कर गये जिस पल
और गहरे उतर गये हो
तुम
हलचल सी हेाती है
तन मन में
अपने खयालों में मुझे
जब
छूते हो हौले से,
मुझे न सही
मेरी तस्वीर ही देख लो
ये सूजी आंखें
पुकारेंगी तुम्ही को
रोम रोम की यही पुकार है
एक बार आ जाओ तुम
चांदनी में चांद को
मैं देखूंगी
उसी पल
देखना तुम
मेरी व्यथा वही कहेगा तुमसे
समझना तुम
और कुछ कहना तुम..............
किरण राजपुरोहित नितिला