सोमवार, 10 जनवरी 2011

मैं और तुम

मैं और तुम
गुनगुनाता
खतम होता हुआ
गीत तुम्हें याद कर
फिर से
मन में बजने लगता
तुम्हारी छवि संग
रागें नृत्य करती
रचती स्वर लहरियां,
व्यग्रता की ताल
बहा ले जाती मधुर यादों  में
जहां मुस्कुरा रहे होते
मैं और तुम !
बनकर
हम!
किरण राजपुरोहित नितिला