शनिवार, 30 जनवरी 2010

कविता


जब सच्चाई देखी  

टूटे सारे भ्रम जब सच्चाई देखी
उथले पानी की गहराई देखी


व्यर्थ बातों के पहाडखड़े है  
हवाओं की हाथापाई देखी 


सोचने को मजबूर हुये जब
सज्जनों की जग हंसाई देखी


माजरा सब समझ आया जब
आवारों की पीठ थपथपाई देखी


इतिहास की आह निकल गई
जब हिन्दु मुस्लिम लड़ाई देखी


........किरण राजपुरोहित नितिला