मंगलवार, 7 जुलाई 2009



पिताजी अंटी में

लघु कथा



  बनिये का बच्चा दस बरस की उम्र के बराबर अकल साथ ले कर जनमता है। बोलना सीखता है तब तक तो अकल उसके पांवों में लोटने लगती है। एक बनिये के एक ऐसा ही होशियार बेटा था। सातवें बरस तो वह बेखटके दुकान का सारा काम करने लगा कम तौलना, कम नापना और झूठ बोलना । पिता को जब पूरा भरोसा हो गया तो वह सारे दिन वसूली करने लगा। दुकान की देहरी पर भी नहीं चढता था। लोगबाग बच्चे को ठगने की सोच कर आते पर ख्ुाद ठग जाते थे। फिर भी मजाल है जो पता चल जाये। 
एक दिन एक जाट सौदा सुलुफ के लिए आया। छोरे को अंगुली से दिखा कर बोला  
‘‘एक रुपये का मालवी गुड़ तौल दे।’’ 
जाट ने सोचा मांगेगा तो रुपया दे दूंगा नहीं तो उधार है ही । छोरे ने सोचा सबेरे सबेरे कौन उधार करे ! नकदनारायण का आसामी नहीं देख कर छोरे ने कहा ‘‘पिताजी वसूली पर गये है। सांझ को आयेगें । मुझे भाव मालूम नहीं।’’
 छोरे की होशियारी देख कर जाट को गुस्सा आ गया। झट से रुपया निकाल कर कहा 
‘‘पिताजी मेरी अंटी में है। यह ले!’’ यह कर उस ने रुपया उस की ओर उछाल दिया। कहा, ‘‘अब फुरती से तौलता हुआ नजर आ!’’
 --------- विजयदान देथा