कितनी कितनी बाते है जो
होठों से टकराती नहीं
चिंहुक चिंहुक कर सो जाती
स्वरों संग लयकाती नहीं
मखमली खुद के होने का
एहसास हरदम कराती रही
हर धड़क के साथ उसकी
गुनगुन आती जाती रही
मानू उसको सच कितना पर
जग कहे कुछ और सही
छू छू कर लौट जाती खुसबू
हुई रंगीन कच्ची उम्र की बही
बुधवार, 15 फ़रवरी 2012
लड्डू पूरी चटनी अचार
खाने की हिदायत बार बार
लोटने पर पूछेगी कई बार