
हर स्त्री की उम्मीद
तब तक
यह समय नही रहेगा
समय बदल जायेगा
हमेशा ऐसे ही थोड़ी रहेगा !!
तब बेटियों की कद्र होगी
रिवाज बदल जायेगें
रीतियां बदल जायेगी
कुरीतियां तो
समूल नष्ट हो जायेगी
बहुत अधिक सम्मान
दिया जायेगा
बेटे बेटियों में
तनिक न फर्क रहेगा
जन्मते ही बिटिया को
खौलते कड़ाह में या
अफीम न सुंघाया जायेगा,
भैंाडापन छिछोरापन की तो
बू न रहेगी
समाज में हर लड़की
गाजे बाजे से ब्याहेगी
उसे सांझ ढले
पाउडर क्रीम थोपकर
चैखट पर खड़े हेाकर
किसी पुरुष को इशारे से
भीतर न बुलाना पड़ेगा,
तब पिता भाइ,
बहन बेटी को बेफिक्र होकर
काॅलेज भेज सकेगें
भीड़ में
यहां वहां हाथ न धरे जायेगें
बेटियंा बोझ न होंगी
जवान होती बेटी के पिता को
जूतियां न घिसनी पड़ेगी।
पूरा घूंघट निकाले
घर का काम निबटा
ड्योढी में बैठी चरखा कातती
औरतें उसांस लेकर
धीमे धीमे बतियाती रहती थी
भरी दुपहरी,
तालाब के तीर दम भर विश्राम करती
बतियाती रहती थी,
हमेशा ऐसे ही नही रहेगा
हम जैसी तकलीफें
हमारी लड़कियों को नही उठानी पडे़गी
तब लड़कियां हंसते हंसते ससुराल जायेगी
दहेज के ताने नही सुनने पड़ेगें
वह युग तो कुछ और ही होगा ,
ऐसा ही है?????
-किरण राजपुरोहित नितिला