वो पुलकित धड़कन
बीती खामोशियां
अब भी कसमसाती है
कूहूकना चाहती है
शालीनता से
जो कभी बस
इक पल चहक कर
रह गई थी
संस्कारों के पैरों तले
वो नन्ही सी
कचनार जैसी
पुलकित धड़कन
अब भी उनींदी है
डायरी के किसी पन्ने तले
और रह रह कर
झांक जाती है
मन के किसी
मोड़ पर
और मैं
नजरअंदाज नहीं कर पाती !
.....किरण राजपुरोहित नितिला
बीती खामोशियां
अब भी कसमसाती है
कूहूकना चाहती है
शालीनता से
जो कभी बस
इक पल चहक कर
रह गई थी
संस्कारों के पैरों तले
वो नन्ही सी
कचनार जैसी
पुलकित धड़कन
अब भी उनींदी है
डायरी के किसी पन्ने तले
और रह रह कर
झांक जाती है
मन के किसी
मोड़ पर
और मैं
नजरअंदाज नहीं कर पाती !
.....किरण राजपुरोहित नितिला