सोमवार, 24 अगस्त 2009

ऐ ! मेरी कविता 
सपनों को
पंाव दें
ऐ मेरी कविता!
चल तू चलती
उमड़ घुमड़
मन में
कुछ ऐसे
जैसे
कोख में प्राण,
प्राणदायी पीड़ा की
 सुखद अनुभूति में
जिंदगी जी लेने दे
 उस कसमसाहट में
अमृत प्राण बन
उद्घोशित हो
मानसाकाष में रच दे
 ऐसी रेखाओं की बनावट
वे जो
 विचारों
वचनों को
 दे पुख्ता भूमि!

--किरण राजपुरोहित नितिला