शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

कुछ मैं कहूं मुझसे ...........



 कंकड़ उछालना 
प्रकृति है उनकी
 मैं देती हूं उससे
अपनी नींवों को मजबूती !

इसी डगर पड़ सकता है
कभी लौट आना
चलते हुये भी
कांटे हटाते जाना !
 

अजाने ही सांप को
दूध पिलाते हैं
फिर भी संभले
वही सयाने है!                               

शब्दों से तो
कम ही काम लेना
मन ही में गिनकर
 गांठ बांध लेना !

तुम ही तो कहते थे
ठीक नही अविश्वास इतना
अब कहते हो
मौका देखकर झट रंग बदलना! 
.................किरण राजपुरोहित नितिला


छू कर मेरे मन को

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

शब्दों के साथ चित्र भी सुन्दर हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

कंकड़ उछालना
प्रकृति है उनकी
मैं देती हूं उससे
अपनी नींवों को मजबूती !

Lajwaab panktiyaaa....