रविवार, 31 जनवरी 2010

कविता


इक पल.......
इक नन्हा सा पल
 हो ,जो खोल दे
नये द्वार
नया राग
 इक मिठास के साथ
 जो घुलती रहे उम्र भर
 सहज मित्रों में
और
 दिप दिप रोशन होता रहे
मन आंगन
मह मह महकता रहे
मानसाकाश
स्वच्छता की धूप
खिल खिल कर
खोल दे
 विचारों के नये सोपान
...............किरण राजपुरोहित   नितिला

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