गुरुवार, 4 जून 2009


दोस्त................ तुम

दोस्त दोस्त न रहे
 तो क्या 
उसे दुश्मन मान लें,
ठंडी ठंडी दोस्ती निभाते हुये
 क्या बरस गुजार लें
उज्र है तुम्हारी कई बातों से 
तो क्या उलाहना दे दूं!!
छोटी सी 
महज एक बात के लिए 
दोस्त खो दूं,

साथ साथ है 
लेकिन
 मन से मन दूर बहुत है
तुम मानो, 
मैं न मानूं कि
 दोस्त दुनिया में बहुत है,
ढूंढ कर देख लो 
अगर मुझ सा एक भी पाओ
 याद अगर कभी न आये मेरी
 बेशक मुझे भूल जाओ ,


साथ थे हर काम में 
एक अहम से दूर बैठे हो 
मैं तो भूल चुका
 लेकिन तुम तन के बैठे हो 
यही करना था तो सुनो!
 एक बात मेरी सुनना 
म्ुुझे तो ठीक है 
पर औरों पर रहम करना!!!!

किरण राजपुरोहित नितिला

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