शनिवार, 18 जुलाई 2009


झिलमिल रात

चंाद ने मुस्करा कर 
तारों ने झिलमिला कर
 खिलखिलाकर 
रात का स्वागत किया 
चांद तारे अैार रात 
मिल कर गुनगुनाने लगे 
चांदनी की लय पर 
धरती झूमने लगी 
रात रानी महकने लगी 
नन्हे तारों से 
झिलमिल हुई धरती 
जुगनु से चमकती 
दमकती चूनर ओढ़ 
यामिनी चली
 ठुनक ठुनक 
हौले हौले 
गगन ने गवाक्ष से 
झुक झुक चुपके से झांका 
तेा रोका !
घड़ी पलक ठहर जाओ 
घन का घनन घनन 
 गान सुनती जाओ! 
-किरण राजपुरोहित नितिला