शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

मेरी किवता

.....ऐसा लगता है

आजकल
कुछ कमी सी लगती है
इन कानों केा
इन नथुनों को
 लगता है जैसे
कुछ लगातार
घट रहा है,
धरा को श्राप है
जेा कम होना चाहिये
वह बढ रहा है---
खून खराबा प्रदूशण जहर द्वेश ,
जेा बढना चाहिये
वह घट रहा है
प्रेम षांति विष्वास
....किरण राजपुरोहित नितिला

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