गुरुवार, 3 दिसंबर 2009


दर्द............
भीतर बाहर
फर्क मिलते है
केवल केवल
 दर्द मिलते है,
आतताइयों के
 ठहाके गूंजते
मासूम चहेरे
जर्द मिलते है,
घािटयां डूबी
खौफ सन्नाटे में
आंखें में लहू
गर्म मिलते है,
राजनीित के
मीठे शब्दों में
शाितर तीरों से
हर्फ मिलते है ,
मुिश्कल में किससे
उम्मीद रखे
 अपने भी
खुदगर्ज मिलते है!!!!!!!!!!
...........किरण राजपुराेिहत ििनितला

2 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

jo dard ko itni sundarta se abhivyakt karen aise shabd bhi kam milte hain.

M VERMA ने कहा…

सुन्दर रचना भाव सुन्दर