सोमवार, 14 दिसंबर 2009

ग़ज़ल


ग़ज़ल
टूट कर गिरने से क्या होगा
आशा का दामन थामना होगा
रास्ते सदा न साफ नजर आएगें
कभी धुंध से भी सामना होेगा
किनारे बैठे ही क्या सोचें
पानी में पाँव डालना होगा
तन का ही मैल कितना धेायें
अंतस को फिर खंगालना होगा
जान चुके दुनिया को फिर भी
साँप को दूध पिलाना होगा
मन से चाहे दूर हो कितने
प्रकट में हाथ मिलाना होगा
भले कड़वाहटें हो रिश्तों में
फिर भी साथ निभाना होगा
दरारें कितनी हो दीवार में
बाहर लिपा दिखाना होगा...............किरण राजपुरोहित‘नितिला’

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