सोमवार, 11 जनवरी 2010

कविता



 आज फिर
तुमने कहा
तुम्हारी याद आई ..
मुझे वह बेला याद आई
जब
 तुम्हें मैं देना चाहती थी
 वह अधिकार
पर
तुम बगलंे झांकते
 किसी में कुछ ढूंढ रहे थे
और
मैं...........
तुममें अपनी ख्वाहिशें
हर डगर फिर तुम
 सहारा मांगते
 मैं पिघल कर
अपनी सार्थकता पर इतराती
लेकिन
कब तक........
 अब मुझे भी थामना है
 उसे
अपने ठगे जाने पर
बुरी तरह क्षुब्ध हूं
लेकिन तुम्हारे माथे पर
मेरे दुख की रेखा तक नही!!!!!!!!
.............किरण राजपुरोहित नितिला

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोमल अहसास लिए हुए बहुत अच्छी रचना . बधाई !!