मंगलवार, 12 जनवरी 2010

कविता

कहां हो ...............         
  सकल
सुयोगों और दुर्योगों को
 पार कर
जब !
जीवन इस पथ से
 गुजर रहा है
 न जाने क्यूं .........?
बचपन फिर अंखुआने लगा है
फिर  ठुनकने लगा है
भोली जिदें
जिन पर वारि जाती थी वो
वो!!!!!!!!!
 आज कहां है....
 दुआ करती रही
मेरी कामयाबी की
हर घड़ी,
मैं ध्यान न दे पाया
कभी
जब वो उम्मीद से देखती
मैं व्यस्तता की आड़
लिये रहा
और तुम नजरों की ओट से
हरदम आषीशती रही
लेकिन
आज.......
 मैं
साक्षात् देखना चाहता हूं
तेा
वो अब कहां है ????

तुम्हारे लिये
कुछ कर
तमाम क्षुब्धता केा धो देना चाहता हूं
लेकिन
तुम नही हो
  तुम कही नही हो
मां !!!!!!! तुम कहीं नही हो
...............किरण राजपुरोहित नितिला

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति......बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर रचना
इस अच्छी रचना के लिए
आभार .................