मंगलवार, 26 जनवरी 2010

कविता



उसको .........

दनादन गोलियां बरसाते
बम फंेकते
याद नही आती उन्हें
अपने पिता की
 मां की
जवानों का सीना छलनी करते
 याद नही आती उन्हंे
अपनी प्रियतमा की?
जो उसकी बलिष्ठ छाती पर सिर रख
सारी दुनिया में
खुद केा महफूज समझती है
 सपने देखती है
अपने भीतर प्रेम के अंकुर सहेजती है
और वह मुग्ध निहारता तनमन, जीवन जीता है
खून से सरोबार सीना ,
सपने में देख वह !
खुदा से खैर न मांगती होगी उसकी,
किसी के इंतजार को अंतहीन बना  कर
वह
पत्नि के पास खुषी से लैाट जाता है
विजयी का दंभ भरकर
 वह वैसा ही स्वागत  कर पाती होगी?
या  उस जवान की पत्नि को
अपने भीतर ही कलपता  महसूस कर
उदास होती होगी !
जहां वह
 थका मांदा पहंुच कर दम भरता है
चैन से उंघ लेता है
नई स्फूर्ति के लिये
मां दहलीज पर खड़ी
उसकी राह देख रही होती
 और वह
दूर से ही अपना हाथ
लहराता
उड़ता सा आता
 एक के बाद एक
स्वजन की खैरियत पूछ कर
  सुख की सांस लेता होगा
रसोई से उठती खुष्बू से
मन हरा होता हेागा
तब ??
तब ???
क्या  याद न आते होंगें वे घर
जहां वह अभी अभी बम रख कर आ रहा है !!!!!!
...............किरण राजपुरोहित नितिला