मंगलवार, 8 जून 2010

दोस्तों के चेहरे
अजब स्याह से है
कभी धुले
धुंधले नजर आते है
हर कोशिश
ज्वार सी उठती
हर सांस
लहर हो जाती
इक चेहरा ढूंढा
संकरी गलियों में
कभी दिखता
कभी धूप हो जाता
भटका रहा उम्मीदों में
सुकून मिला
नीम की छाया में ....
किरण राजपुरोहित नितिला

4 टिप्‍पणियां:

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत एहसास

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत सुन्दर , कभी धुले कभी धुंधले नजर आते हैं , कभी धूप हो जाते हैं , सुकूँ मिला नीम की छाया में , ...कड़वी ही सही छाया तो सुखद है ।

सुनील गज्जाणी ने कहा…

किरण जी ,
सादर प्रणाम !
आप के ब्लॉग पे पहली बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ,
सुंदर कविताए पढने का मिली , साधुवाद
आभार !